ऐसौ दान माँगयै नहिं जौ, हम पैं दियौ न जाइ ।
बन मैं पाइ अकेली जुवतिनि, मारग रोकत धाइ ॥
घाट बाट औघट जमुना-तट, बातैं कहत बनाइ ।
कोऊ ऐसौ दान लेत है, कौनैं पठए सिखाइ ॥
हम जानतिं तुम यौं नहिं रैहौ, रहिहौ गारी खाइ ।
जो रस चाहौ सो रस नाहीं, गोरस पियौ अघाइ ॥
औरनि सौं लै लीजै मोहन, तब हम देहिं बुलाइ ।
सूर स्याम कत करत अचगरी, हम सौं कुँवर कन्हाइ ॥1॥
क्या होती है दानलीला, क्या है इसका महत्व, क्या करते है ठाकुरजी इस दिन, क्या अर्थ है ऊपर दिए पद का यह सब जानने के लिए पढ़िए
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